सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

सुबह 06

रोशनी के नए झरने
लगे धरती पर उतरने

क्षितिज के तट पर धरा है
ज्योति का जीवित घड़ा है
लगा घर-घर में नए
उल्लास का सागर उमड़ने

घना कोहरा दूर भागे
गाँव जागे, खेत जागे
पक्षियों का यूथ निकला
ज़िंदगी की खोज करने

धूप निकली, कली चटकी
चल पड़ी हर साँस अटकी
लगीं घर-दीवार पर फिर
चाह की छवियाँ उभरने

चलो, हम भी गुनगुनाएँ
हाथ की ताकत जगाएँ
खिले फूलों की किलक से
चलो, माँ की गोद भरने

--नचिकेता

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