धुंध है अंधेरा है
नभ से उतर कोहरे ने
धरा को घेरा है
दुबके पाँखी
गइया गुम-सुम
फूलों से भौंरे
तितली गुम
मौसम ने मौन राग छेड़ा है
मजूर ठिठुर कर
अलाव ताप रहे
पशु पंछी पौधे
थर-थर काँप रहे
धुंधला सा आज सवेरा है
रेल रुकी
उड़ते अब विमान नहीं
फ़सलें सहमी
खेतों मे दिखते किसान नहीं
कोहरा लगा रहा फेरे पर फेरा है
सूरज की
किरन हुईं गाइब
चंदा घर जा
बैठा है साहिब
सब जगह कोहरे का डेरा है
--श्याम सखा ‘श्याम’
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