मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

भोर खड़ी दरवाजे पर 06

अंधियारे गलियारों की सर्द हवाओं को तजकर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर

जाड़े की वो प्यारी बातें दिन, बौना और लम्बी रातें
ख़त डालकर अंगनाई में, धूप बुनेगी सौ जज्बातें
उम्मीदों की गठरी बांधे, ओस की बूंदों से सजकर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर

नानी माँ के तिल के लड्डू. नुक्कड़ की वो गरम जलेबी
गन्ने का रस गुड की ढेली, भली लगे अमृत फल से भी
देर शाम तक पुरवाई में तफरी के दिन गए गुजर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर

अरमानो के डालके झूले, खेतों में फिर सरसों फूले
हुलस हुलस कर अम्बर आज, खुद अपने आनन को छूले
हौले से मुस्काई धरती, हरियाली की ओढ़ चुनर
कोहरे की चादर में लिपटी भोर खड़ी दरवाजे पर


नियति वर्मा
जयपुर

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