सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

मन सिहरा जाए 06

तन सिहरे
मन सिहरा जाए

सावन बीत गया
मैं प्यासी
अब सर्दी में घोर उदासी
ठिठुर गए हैं सपने अपने
अरमानों
पर कोहरा छाए

धुंध घिरे
पाला जो बरसे
तेरे लिए दो नैना तरसे
सीने से ऑँचल छीने जब
बेदर्दी
ये सर्द हवाएँ

साँझ हो
या भिनसार सँवरिया
कठुआए कमसिन उमरिया
पोर पोर में पीर विरह की
मीठा-
मीठा दर्द जगाए

पल पल
पाछ रहा है पछुआ
जैसे डंक लगाए बिछुआ
बर्फ हुआ है रक्त नसों का
जाने कब
सांसे थम जाए

शंभु शरण मंडल
धनबाद झारखंड

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