तन सिहरे
मन सिहरा जाए
सावन बीत गया
मैं प्यासी
अब सर्दी में घोर उदासी
ठिठुर गए हैं सपने अपने
अरमानों
पर कोहरा छाए
धुंध घिरे
पाला जो बरसे
तेरे लिए दो नैना तरसे
सीने से ऑँचल छीने जब
बेदर्दी
ये सर्द हवाएँ
साँझ हो
या भिनसार सँवरिया
कठुआए कमसिन उमरिया
पोर पोर में पीर विरह की
मीठा-
मीठा दर्द जगाए
पल पल
पाछ रहा है पछुआ
जैसे डंक लगाए बिछुआ
बर्फ हुआ है रक्त नसों का
जाने कब
सांसे थम जाए
शंभु शरण मंडल
धनबाद झारखंड
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