सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

धुँधली धूप 06

घना घनेरा कोहरा छाया
धरती ढूँढ़न निकली-
धूप
अम्बर-
गलियाँ भूल भूलैयाँ
भूली भटकी फिरती धूप

हिम शिखरों पर शिशिर-हेमन्त
द्वार पाल से आन खड़े
सूरज ने साँकल खटकाई
सुनती घाटी
कान धरे
किरण डोर
से बँध कर आई
थकी-थकी अलसाई धूप

सिमटी सहमी धार नदी की,
शर सा चुभता शीत
थर-थर काँपें ताल तलैया
ठिठुरन से
भयभीत
गर्म दुशाला
ले कर आई
ओढ़ाती, सहलाती धूप

सी-सी सिहरें वन और उपवन
गाँव-गाँव अलाव जले
हीरक कणियाँ झूला बाँधें
हिम कण घुलते
पाँव तले
पीली मेंहदी
घोल के लाई
लीपे आँगन-देहरी धूप

धरती के
घर मिलने आई
धुँधले पथ पर चलती धूप

--शशि पाधा

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