कोहरा
यह कब हटेगा।
चल रही ठंडी हवाएँ,
हड्डियाँ तक भेद जाएँ,
भास्कर का ताप सबको बराबर
किस दिन बटेगा।
कोहरा
यह कब हटेगा।
बिक रही हैं आत्माएँ,
मिट चली हैं आस्थाएँ,
अनाचार, अन्याय, अत्याचार
का घन कब छटेगा।
कोहरा
यह कब हटेगा।
हो रहा शोषित का शोषण,
बने निर्धन और निर्धन,
दु:खी पीड़ित मानवों का किस दिवस
संकट कटेगा।
कोहरा
यह कब हटेगा।
--राकेश कौशिक
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