आई बसंत ऋतु आई : रचना श्रीवास्तव
सर्दी ने समेटी ली चादर
रस से भरी
धरा की गागर
फूलों ने जो शौल हटाया
मंद सुगंध का
झोका आया
मौसम हँसा भरी अंगड़ाई
आई बसंत ऋतु आई
सूरज ने लिहाफ से झाँका
अम्बर बोला
बाहर आजा
झोले में भर सारा कोहरा
शिशिर चल दिया
ज़रा न ठहरा
धूप गुनगुनी हुई सुहाई
आई बसंत ऋतु आई
करने लगी धरा शृंगार
डाले गले
बसन्ती हार
क्यारी क्यारी फूल खिले
अंबर धरती
गले मिले
धानी चुनर उड़ी लहराई
आई बसंत ऋतु आई
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रचना श्रीवास्तव
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