नाच उठा मन बाँध पैंजनी
ठुमक थिरक हुलसाया
काँधों पर फागुन को लादे
लो, बसंत आया
अधरों पर चुम्बन सा
आकर बैठा मधुरिम हास
बाँहें फैला कर उन्मादी
हठी हुआ उल्लास
मन के गली-गलिहारों को
बासंती रंगवाया
कलियों को अंगराग लगाता
गात गात में गंध
मन ही मन हुलसाता
तोड़े हौले हौले बंध
सूनी रेतीली वीथि में
फिर उमंग छाया
मन के मदिर मंजीरे
बोले मीठे मीठे बोल
नयनकोण में भाव रेशमी
करने लगे किलोल
तोड़े सारे फंद कहाँ
यह मन-तुरंग धाया
काँधों पर फागुन को लादे
लो ,बसंत आया
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प्रवीण पंडित
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