रंग से भरे
सुगंध से तरे
दिन ले के आए ऋतुराज रे।
सरसों ने पहनाया फूलों का पीतवस्त्र
परिमल ने दान किये हैं मादक अस्त्र-शस्त्र
कहता जय काम
बौराया आम
सजता है बन वसंत-ताज रे।
महुवे ने राहों में फूल हैं बिछा दिये
आँवलों ने धीरे से शीश हैं झुका लिये
मदन सारथी
चला महारथी
जीत लेने जन-गण-मन आज रे।
खेतों की रंगोली छू बसंत पद तरी
फागुन ने पाहुन के पैर महावर भरी
बोली होली
लाओ रोली
तिलक धरुँ माथे सरताज के।
कुहरे के चंगुल से धरती को मुक्त किया
जाड़े को मूर्च्छित कर पुनः उसे सुप्त किया
धरती अम्बर,
ग्राम, वन, नगर
करते हैं सब इस पर नाज रे।
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धर्मेन्द्र कुमार सिंह ’सज्जन’
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