चेहरा पीला आटा गीला
मुँह लटकाए कंत,
कैसे भूखे पेट ही गोरी
गाए राग वसंत
मंदी का है दौर नौकरी
अंतिम साँस गिने,
जाने कब तक रहे हाथ में
कब बेबात छिने
सुबह दिखें खुश रूठ न जाएँ
शाम तलक श्रीमंत
चीनी साठ दाल है सत्तर
चावल चढ़ा बाँस के उप्पर
वोट माँगने सब आए थे
अब दिखता ना कोई पुछत्तर
चने हुए अब तो लोहे के
काम करें ना दंत
नेता, अफसर और बिचौले
यही तीन हैं सबसे तगड़े
इनसे बचा-खुचा खा जाते
भारत में भाषा के झगड़े
साठ बरस के लोकतंत्र का
चलो सहें सब दंड
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ओमप्रकाश तिवारी
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