सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

आज उदासी के पाखी लो 07

आज उदासी के पाखी लो
लौट कहाँ से फिर आये ।

लगता जैसे कहीं मयूरी
ने फागुन को याद किया,
या चकवी ने तानपुरे पर
अश्रु भरा आलाप लिया,
प्रीत रंग में रंगी चुनरिया
देख एकाकी मन बिलखाये

आज उदासी के पाखी लो
लौट कहाँ से फिर आये ।

किसने थे ये सुर छनकाये
मीरा मन के आंगन में,
हर एक गीत में तुम ही तुम
राग बना मन फागन में,
आज तुम्हारे बिन ना बाजे
घुंघरू मन के बिसराये,

आज उदासी के पाखी लो
लौट कहाँ से फिर आये ।

जहाँ मीत ने छोड़ा पथ में
उसी जगह पर खड़े हुए,
प्रीत ने डाले ऐसे डोरे
नयन सीप में जड़े हुए,
सुधियों के मेघा घिर आये
अंतर ने सागर पाये,

आज उदासी के पाखी लो
लौट कहाँ से फिर आये ॥
--
गीता पंडित

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