घर लौट आओ : श्याम सखा श्याम
आई बसन्त
जाड़ा उड़न्त
घर लौट आओ
प्रिय कन्त
लो जाड़े का
हठ टूटा
तन से ऊनी
केंचुल छूटा
बसन्त है ऋतुराज सुमन्त
कलियों की
फ़ूटी मुस्कान
तितली
मांग रही लगान
भौंरे भी आ गये तुरन्त
पगलाई फिर रही
बयार
ठूंठों पर
मचली बहार
बहके-महके से दिग-दिगन्त
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श्याम सखा श्याम
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