फागुन आयो रे : निर्मल सिद्धू
दिल-दिल में
उल्लास बड़ा
उत्पात
मचायो रे,
फागुन आयो रे!
किरनों ने अब
धुंध को चीरा
मन्द-मन्द है
बहे समीरा,
बगिया में
भंवरा भी फिर से
घात लगायो रे!
फागुन आयो रे!
ऋतुओं की रानी
है फागुन
एक नहीं
बहुतेरे हैं गुन,
मिलजुल सारे
प्रेम की इक
अलख जगायो रे!
फागुन आयो रे!
दिवस बड़े और
रैना छोटी
चुहल करे
नयनों की गोटी,
सजन-सजनिया
होली में मिल
रंग जमायो रे!
फागुन आयो रे!
उलझा जग का
तानाबाना
कभी कोई
कभी कोई निशाना,
उजड़े लोगों में
दोबारा
आस जगायो रे!
फागुन आयो रे!
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निर्मल सिद्धू
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