शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

कर पाएँगे नहीं नाज़ : रावेंद्रकुमार रवि 08

जिसके कारण ख़त्म हो गए
ख़ुशियों के सब राज़!
कभी नहीं कर पाएँगे हम
इस हरक़त पर नाज़!

पैरों में पैंजनियाँ बाँधे,
सिर पर ओढ़े लाल चुनरिया!
ठुमक-ठुमककर, किलक-किलककर,
नाच रही थी नन्ही बिटिया!

सुध-बुध खोकर मम्मी-पापा,
उसे देखकर रीझ रहे थे!
सोच विदाई की बातों को,
मन ही मन में भीज रहे थे!

तभी वहाँ पर आई धम से
बारूदी आवाज़!
सिसक-सिसककर क्षण-भर में ही
बंद हुए सब साज़!
कभी नहीं कर पाएँगे ... ... .

थकी हुई थी, वह सोई थी,
मीठे सपनों में खोई थी!
दोनों ख़ुश हो बतियाते थे,
हनीमून को वे जाते थे!

मम्मी क्या लेकर आएँगी,
ख़ुश हो सोच रहे बच्चे सब!
जाग रही बहना आशा में,
भइया-भाभी पहुँचेंगे अब!

ताजमहल हो गई अचानक
ट्रेन, दफ़न मुमताज़!
तड़प-तड़पकर पल-भर में ही
बिखरे सब अंदाज़!
कभी नहीं कर पाएँगे ... ... .
--
रावेंद्रकुमार रवि

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