आसमान लाल-लाल हो रहा,
धरती पर घमासान हो रहा।
हरियाली खोई है,
नदी कहीं सोई है,
फसलों पर फिर किसान रो रहा।
सुख की आशाओं पर,
खंडित सीमाओं पर,
सिपाही लहू लुहान हो रहा।
चिनगी के बीज लिए,
विदेशी तमीज लिए,
परदेसी धान यहाँ बो रहा।
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भारतेंदु मिश्र
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