बच्चों के सीनों से
चिपके हैं बम,
अट्टहास करते हैं
देख परचम।
गलियों में रस्तों पर
खून की फुहार,
लटके तस्वीरों पर
मुरझाए हार।
देख-देखकर होतीं
आँखें नित नम।
अपनों के बीच उगी
सुदृढ़ दीवार,
हिस्सों बँटता गया
अन्तस् का प्यार।
हृदय की पीड़ा को
किससे कहें हम
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अशोक अंजुम
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