शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

बौराए हैं बाज फिरंगी : रावेंद्रकुमार रवि 08

चिर निद्रा में गई रागिनी,
कैसे भोर जगाएगी?
बौराए हैं बाज फिरंगी,
कैसे चिड़िया गाएगी?

प्यूपा बनने से पहले ही,
कौए ने खाया इल्ली को!
फूलों से आ सुमुखी तितली,
कैसे कुछ बतियाएगी?
फूलों से पराग भी ग़ायब,
वह उनसे क्या पाएगी?
बौराए हैं ... ... .

घृणा-द्वेष भर अंगारों-सी ,
दहशत उगल रही जो “नाली”,
सोचो, ज़रा बाँसुरी उससे,
कैसे बनकर आएगी?
भाईचारे की स्वरलहरी,
कैसे मन को भाएगी?
बौराए हैं ... ... .
--
रावेंद्रकुमार रवि

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