सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

फिर कब आएँगे 08

चिट्ठी-पत्री, ख़तो-क़िताबत के मौसम
फिर कब आएँगे?
रब्बा जाने,
सही इबादत के मौसम
फिर कब आएँगे?

चेहरे झुलस गए क़ौमों के लू-लपटों में,
गंध चिरायँध की आती छपती रपटों में।
युद्धक्षेत्र से क्या कम है यह मुल्क हमारा -
इससे बदतर
किसी क़यामत के मौसम
फिर कब आएँगे?

हवालात-सी रातें दिन कारागारों से,
रक्षक घिरे हुए चोरों से, बटमारों से।
बंद पड़ी इजलास,
ज़मानत के मौसम
फिर कब आएँगे?

ब्याह-सगाई, बिछोह-मिलन के अवसर चूके,
फसलें चरे जा रहे पशु हम मात्र बिजूके।
लगा अँगूठा कटवा बैठे नाम खेत से -
जीने से भी बड़ी
शहादत के मौसम
फिर कब आएँगे?
--
नईम

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