शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

ठिठक रही रात : उत्तम द्विवेदी 08

ठिठक रही रात ए देखो
भोर होगी ...
कह नहीं सकता।

महुआ यूँ टपक पडे. कब
सर पर कोई आग–गोला
भयातुर हो ममता डोले
न छोडे हैं अब हाथ पिया
रेल पटरियों से थर्राते
ड्योढ़ी आगे बढ़ते पग
लौट फिर आयेंगे अँगने
कह नहीं सकता। ठिठक ...

घने अँधेरे में दिखता
आशा का एक लघु तारा
तभी घूमती उस पर एक
काल छाया छा जाती है
स्याह देह पर दिखता है
काले तिल जैसा हर यत्न
तम छाँट सूरज चमकेगा
कह नहीं सकता। ठिठक ...

सिर झुलाने से न होगा,
शिराओं सा आतंकी रक्त
बनाना है धमनीय हमें
अमावस से एक–एक पल
रात पूनम की करना है
उत्तम बदलाव होगा ही
असत्य कभी सत्य का वार
सह नहीं सकता। ठिठक ...
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उत्तम द्विवेदी
मुंबई, महाराष्ट्र (भारत)

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