शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

आतंक का साया 08

सच कहें मन भा गया
आतंक का साया.....

भीड़ तंत्री हम न जानें
आत्म अनुशासन.
स्वार्थ मंत्री हम न मानें
नीति, हो उन्मन.
'प्रीति भय बिन हो नहीं'-
है सत्य यह चिंतन-
सफल शासक वही जिसने
नियम मनवाया.
सच कहें मन भा गया
आतंक का साया.........

क्रांतिकारी जब बने आतंक
अरि भागा.
सत्य-आग्रह हेतु जन-मन
तभी अनुरागा.
तंत्र अपना हुआ, निज हित
सभी ने साधा.
है नहीं आतंक, भ्रष्टाचार
मन भाया.
सच कहें मन भा गया
आतंक का साया.........

आओ! सर्वोदय की भूली
राह अपनायें.
दुराग्रह का शमन कर,
सुख-शांति फिर लायें.
सिरफिरे जो उन्हें दें
कटु दंड- थर्रायें.
शेष जन-गण कहे:जैसा
किया फल पाया.
सच कहें मन भा गया
आतंक का साया.......
--
संजीव वर्मा 'सलिल'

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