रविवार, 23 अक्तूबर 2011

ताल भरे कमल खिले : कुमार रवींद्र 09

दिन बरखा-बिजुरी के
ताल भरे
कमल खिले

रात सुना मेघराग
दिन भर घर बदराया
छत पर हर सांझ दिखा
इन्द्रधनुष का साया

बिरवे सब हरे हुए
पीपल के
पात हिले

कमल-पात बूँद-बूँद
सुख सहज सहेज रहे
कजरी ने बदरा से
उस सुख के हाल कहे

बार-बार मेघराज
बरगद से
गले मिले

भीज-भीज
फूलों की पगडंडी हुई साँस
धुली-धुली हवा भरे
मन में मीठे हुलास

ताप मिटे सारे ही
नहीं रहे
कोई गिले
--
कुमार रवींद्र

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