रविवार, 23 अक्तूबर 2011

पंक में खिला कमल : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" 09

पंक में खिला कमल
किन्तु है अमल-धवल
बादलों की ओट में से
चाँद झाँकता नवल

डण्ठलों के साथ-साथ
तैरते हैं पात-पात
रश्मियाँ सँवारतीं
प्रसून का सुवर्ण-गात
देखकर अनूप-रूप को
गया हृदय मचल
बादलों की ओट में से
चाँद झाँकता नवल

पंक के सुमन में ही
सरस्वती विराजती
श्वेत कमल पुष्प को
ही शारदे निहारती
पूजता रहूँगा मैं
सदा-सदा चरण-कमल
बादलों की ओट में से
चाँद झाँकता नवल
--
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें