रविवार, 23 अक्तूबर 2011

मन कमल मेरा खिल गया : विमल कुमार हेडा 09

देख घटा आषाढ़ की
मन कमल मेरा खिल गया
जब बरसने लगे मेघा
लगा सुख सागर मिल गया

जेठ की तपन से
था वो मुरझाया हुआ
सूरज की अगन से
था वो झुलसाया हुआ
कीच के छूटने से
था वो कुम्हलाया हुआ
जीवन आश टूटने से
था वो अकुलाया हुआ

जो पवन आये बादल लेकर
मन को मयूर मिल गया
देख घटा आषाढ़ की ...

धरापुत्र की गृहस्थी
चलती मेघों के दम पर
जो बिन गरजे बरसे
ऐसे वादों के बल पर
दिन उगता दिन ढलता
सारा खेतों में हल पर
बोया पसीना फसल ऊगाई
चौमासे के जल पर

जो भरे सरिता सागर सब
लगा भगवान मिल गाया
देख घटा आषाढ़ की ...
--
विमल कुमार हेड़ा
टी-3/ 61 एल अणुप्रताप कोलोनी
पो.आ. भाभानगर, रावतभाटा (राज.)
जिला चित्तौड़गढ़, वाया कोटा (राज.)

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