रविवार, 23 अक्तूबर 2011

कितने कमल खिले 09

कितने कमल खिले जीवन में
जिनको हमने नहीं चुना

जीने की
आपाधापी में भूला हमने
ऊँचा ही ऊँचा
तो हरदम झूला हमने
तालों की
गहराई पर
जीवन की
सच्चाई पर
पत्ते जो भी लिखे गए थे,
उनको हमने नहीं गुना

कितने कमल खिले जीवन में
जिनको हमने नहीं चुना


मौसम आए मौसम बीते
हम ना चेते
अपने छूटे गाँव बिराना
सपने रीते
सपनों की
आवाजों में
रेलों और
जहाज़ों में

जाने कैसी दौड़ थी जिसमें
अपना मन ही नहीं सुना
कितने कमल खिले जीवन में
जिनको हमने नहीं चुना
--
मुक्ता पाठक

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