मेघ बजै, हवा चलै
जियरा अगियार जलै
धनुष-गगन, बूँद-तीर
मन्मथ तन रहा चीर
मन होवै अति अधीर
पोर-पोर बढ़ै पीर
सन-सन पछियाँव बहै
बिरही मन आज दहै
सूरज ज्यों गले मिलै
अमवा झुकि झूमि-झूमि
महुआ मुख रहा चूमि
भीग रहे पात-पात
पुलकित हैं उभय गात
झर-झर-झर प्रेम झरै
चरर-मरर जिया करै
देखि-देखि बाँस जरै
--
धर्मेन्द्र कुमार सिंह "सज्जन"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें