ले आया पावस के पत्र
मेघ डाकिया
मौसम ने धूप दी उतार
पहन लिए बूँदों के गहने
खेतों में झोंपड़ी बना
कहीं-कहीं घास लगी रहने
बिना पिए तृषित पपीहा
कह उठा पिया-पिया-पिया
झींगुर के सामूहिक स्वर
रातों के होंठ लगे छूने
दादुर के बच्चों का शोर
तोड़ रहे सन्नाटे सूने
करुणा प्लावित हुई घटा
अंबर ने क्या नहीं दिया
--
पं.गिरिमोहन गुरु
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें