रविवार, 23 अक्तूबर 2011

हर ओर जिया हरसाए रे : शंभु शरण "मंडल" 10

मेघ बजे घनघोर सखी
हर ओर जिया हरसाए रे
पहली-पहली बार पिया
ज्यों घूँघट-पट अलगाए रे

करधर के करतल धुन सुनके
ताल नदी करछाल करे
पनसोई लहरों पर नाचे
सुतल आस जगाए रे

हरियाई मुरझाई छाती
बूदों की पाती पढ़के
बुलबुल बाँचे बैठ रुबाई
कोयल कजरी गाए रे

बौछारों की डोर में बंधके
वर अंबर धरती गोरी
साखी में बादल बिजुली के
फेरे सात लगाए रे

घट-घट पनघट छलके जैसे
नैनन से मनुहार करे
बनपाती बन जाए घाती
देख मुझे बउराए रे

प्रेमपचीसी खेले झींसी
गालों से ढलके हलके
मन फूले वनफूल बदन
संतूर हुआ अब जाए रे
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शंभु शरण "मंडल"
धनबाद (झारखंड)

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