इतना मत तरसा
यार, कुछ बूंदें तो बरसा
इतनी गरमी हाय पसीना
दिन बदरंग हो गया कारी
टेर रहा है मोर और
लगी सूखने है फुलवारी
कुछ भीगेंगे कुछ नाचेंगे
कहरवा, कजरी को हरसा
दृष्टि जहाँ तक सृष्टि हँसेगी
डाल-डाल पर झूले
दिन की बारहमासी
रातोंरात मल्हारें छूले
मत टँग आसमान में मैले
झर तू झर-झर-सा
धूल बनोगे या एक मोती
या वारिधि का संग
सब कुछ भला-भला-सा होगा
आओ, जैसे गंग
घर से निकले हो तो
मन में ऐसा क्यों डर-सा
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क्षेत्रपाल शर्मा
(नई दिल्ली)
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