रविवार, 23 अक्तूबर 2011

मेघ बजे रे 10

मेघ बजे, मेघ बजे
मेघ बजे रे
धरती की आँखों में
स्वप्न सजे रे

सोई थी सलिला
अंगड़ाई ले जगी
दादुर की टेर सुनी
प्रीत में पगी
मन-मयूर नाचता
न वर्जना सुने
मुरझाये पत्तों को
मिली ज़िंदगी
झूम-झूम झर झरने
करें मजे रे
धरती की आँखों में
स्वप्न सजे रे

कागज़ की नौका
पतवार बिन बही
पनघट-खलिहानों की
कथा अनकही
नुक्कड़, अमराई
खेत, चौपालें तर
बरखा से विरह-अगन
तपन मिट रही
सजनी पथ हेर-हेर
धीर तजे रे
धरती की आँखों में
स्वप्न सजे रे

मेंहदी उपवास रखे
तीजा का मौन
सातें-संतान व्रत
बिसरे माँ कौन
छत्ता-बरसाती से
मिल रहा गले
सीतता रसोई में
शक्कर संग नौन
खों-खों कर बऊ-दद्दा
राम भजे रे
धरती की आँखों में
स्वप्न सजे रे
--
संजीव सलिल

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