रविवार, 23 अक्तूबर 2011

बरखा हौले-हौले आओ : डॉ.त्रिमोहन तरल 10

छत पर
टीन पुरानी, उसको
तड़-तड़ नहीं बजाओ
बरखा! हौले-हौले आओ

मज़दूरन माँ
हाड़ तोड़कर
थोड़ा-बहुत कमा लाई है
रूखा-सूखा
खिला-पिला
मुन्नी को अभी सुला पाई है
ख़ुद जग लेगी
पर उसकी
गुड़िया को नहीं जगाओ
बरखा! हौले-हौले आओ

गुड़िया का
बापू भी यों तो
ज़्यादा नहीं कमा पाता है
उसी पुरानी
छत से, बापू
के बापू तक का नाता है
टीन बदलवाकर
यादों से
रिश्ता मत तुड़वाओ
बरखा! हौले-हौले आओ

बूँदा-बाँदी
में तो काफी
काम यहाँ चलते रहते हैं
निपट दिहाड़ी
मज़दूरों के
बच्चे भी पलते रहते हैं
तेज़ बरसकर
बेचारों का
काम नहीं रुकवाओ
बरखा! हौले-हौले आओ

उपवन में
धीरे-धीरे
आना भी तो आना होता है
कोमल कलियों
को हलके
हाथों से सहलाना होता है
जितना सहन
कर सकें कलियाँ
उतना प्यार लुटाओ
बरखा! हौले-हौले आओ
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डॉ.त्रिमोहन तरल

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