रविवार, 23 अक्तूबर 2011

महका-महका- 11

मेहंदी-सुर्खी
काजल लिखना
महका-महका
आँचल लिखना!

धूप-धूप
रिश्तों के
जंगल
ख़त्म नहीं
होते हैं
मरुथल
जलते मन पर
बादल लिखना!

इंतज़ार के
बिखरे
काँटे
काँटे नहीं
कटे
सन्नाटे

वंशी लिखना
मादल लिखना!
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डॉ. हरीश निगम

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