रविवार, 23 अक्तूबर 2011

मन मेरा भी महक उठा 11

भर ख़ुशियों से चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा

सूरज ने जब डाले पर्दे
धूप न जाने कहाँ चली
बाँधे गाँठ
हवाओं के सँग
मौसम महके गली-गली

बदली ऋतु तो
कण-कण में सुख
हौले-हौले चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा


किरण खिली गदराए पेड़
वन में खग-मृग आतुर विचरे
आँचल पर
आकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे

कुसमित पवन
सजाए दीपक
नभ में चंदा दमक उठा
मन मेरा भी महक उठा
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रचना श्रीवास्तव

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