रविवार, 23 अक्तूबर 2011

मेघ छटे 11

मेघ छटे
नभ नीला-नीला हुआ
क्वाँर की हुई अवाई
राम-राम कर
कीचड़, पानी और
छतरी से छुट्टी पाई

ज्वाँर लगे खेतों में
दद्दा लगे घूमने
देख-देखकर धान
पिताजी ख़ुश हो जाते
तोड़-तोड़कर लाते भुट्टे
रोज़ भूनते,
पुरा पड़ोसवालों को
भरपेट खिलाते
अम्मा कहतीं सुनो-सुनो जी
बिना देर के,
देव उठनी के बाद
'शशि' की करो सगाई

दिखती सोयाबीन
चमकती सोने जैसी,
कैसी-कैसी बात
महकती रहती मन में
भौजी कहतीं मैं लूँगी
चाँदी की पायल
भैया सपने लेकर
उड़ते नीलगगन में
दद्दा बोले, हँसिया लेकर
चलो खेत में
मिल-जुलकर सब करें
धान की शुरू कटाई|

मझले कक्का जाते
हरदिन सुबह बगीचे,
काकी लिए कलेवा
पीछे-पीछे जातीं
छोटे कक्का अब तक
बिन ब्याहे बैठे हैं
मझली काकी हँसते-हँसते
उन्हें चिढ़ातीं
दद्दा के माथे पर
चिंता की रेखाएँ,
नहीं कहीं से बात
अभी रिश्ते की आई
--
प्रभु दयाल श्रीवास्तव

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