रविवार, 23 अक्तूबर 2011

महका मन 11

बहुत दिन के बाद
महका मन

सिलबटें कम की समय ने
एक ठंडक पी
लहलहाने लगा उर का
विपिन दंडक भी
मुदित चिड़ियों-सा
प्रकृति के साथ
चहका मन

मिल गई पर्यावरण को
शुद्ध आक्सीजन
इस तरह से कुछ हुआ
ॠतु-चक्र परिवर्तन
डूबकर स्वप्निल
सुरा-सरि आज
बहका मन
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पं. गिरिमोहन गुरु

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