नये साल के
नये सूर्य का
शत-शत वंदन
घर-घर में
फैले उजियारा
बहे प्रेम की
अविरल धारा
राग-द्वेष
मिट जाय धरा से
रहे कहीं ना
रुदन-कंदन
सोन-चिरैयाँ
चह-चह चहके
दिग-दिगंत
घर-आँगन महके
दुख-दारिद्रय
मिटे अग-जग से
खुशियाँ करें
यहाँ पर नर्तन
पंख लगे
सबके सपनों को
नज़र लगे ना
चंदन वन को
सगुन बधावा
बाजे चहुँ दिश
सोन किरिन का
हो अभिनंदन
कृष्णानंद कृष्ण
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