सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

गीत बनें नवगीत 12

गीत बनें
नवगीत बनें मन
छंदों में मन बुन लायें |


भूल - भुलैया
में खोये मन
को अपनी पहचान मिलें,
शब्द नये हों
नए व्याकरण
अर्थ को अपने मान मिलें,


हर पल बने
बांसुरी ओठों
पर अंतर की धुन लायें |


मन डाली पल
- पाखी चहकें
श्वास के पनघट भर आयें ,
हंस बने मन
नीर क्षीर के
मंथन मन से कर पायें,


नव-वर्ष की
नव बेला में
नेह पगे मन गुन आयें | |


--गीता पंडित

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