एक साल गया
आया है नया।
बच्चों को संग लिये
निकली है बया।
घोंसले से बाहर
कोहरे के पार पंख फैलाए
एक बड़ा, एक नीला आसमान है।
माना था गर्द
और बहुत दर्द।
पलकों पर आ जमा
मौसम भी सर्द।
एक घुप्प सफ़ेद अंधेरे
ठिठुरन के घेरे से बहुत ज़्यादा
दो हथेलियों की उष्मा में जान है।
बीता सो बुलबुला
शबनम में सब धुला।
एक हवा पत्तों को
आज भी रही झुला।
एक किरण पास आ
ज़ख्म सहलाती है हौले से गाती है
हौसले के पंखों में लंबी उड़ान है।
-अभिरंजन कुमार
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