सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

फिर आया नव साल‌ 12

थके उनींदे शिथिल कंधों पर‌
ओढ़ ओढ़ नई शाल‌
फुदक फुदक कर चिड़िया जैसा
फिर आया नव साल

सागर और मगरमच्छों ने
फिर से किये करार‌
छोटी मछली से फिर छीने
जीने के अधिकार‌
बूढ़े कृश मेंढक कछूओं को
देंगे देश निकाल

आशाओं के सपने बोये
छल के बखर चले
जहाँ फूल पैदा होना थे
बस काँटे निकले
रहे बेशरम खड़े पहरुये
हुआ न कोई मलाल


तृष्णा आशा मोह भरे हैं
आँगन मन मंदिर‌
करुणा दया प्रेम से खाली
ठगे ठगे से घर‌
संवेदन भी खंड खंड हैं
हृदय हुये कंगाल

-- प्रभु दयाल

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