इस सडक के
नित्य बदलें नए चोले
सुबह के आँचल में
रात की कहानी
सडक के किनारे
बिखरी है जिन्दगानी
खुशियाँ चुप रहें
दर्द हौले से बात खोले
इस सडक के नित्य बदलें
नए चोले
कहीं सेहरे
कहीं अर्थी के फूल
नैनो में चुभते
हादसों के शूल
शब्द बिक गये
सत्य को अब कौन बोले
इस सडक के नित्य बदलें
नए चोले
भूख से जन्मी
घरती की कली वो
सड़क की गोद में
बे मौसम पली वो
रंगों की चाहत में
रिबनों-सी उड़े डोले
इस सडक के नित्य बदलें
नए चोले
--रचना श्रीवास्तव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें