सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

सड़क के दोनो किनारे 13

सड़क के दोनो किनारे
कोई झंडा गाड़ बैठा
किस तरह बीमार बैठा

चुप रहेंग बंशियाँ भी
बोलने वालों के आगे
रंग मटमैले लगेंगे
चल रहे मौसम अभागे
गंध भी टहलेगी लेकिन
है प्रतीक्षित खार बैठा

यह सदी भी खास होगी
है नहीं आसार इसका
आदमी जो गुम हुआ है
मूल्य उसका भार इसका
मापनों परिमापनों का
दिन बहुत कुछ हार बैठा

जिंदगी नंगी अकेली
चल पड़ी है बस्तियों में
मुट्ठियाँ भींचे चलीं
सैलानियों की कश्तियों में
रात को बेआबरू कर
एक पहरेदार बैठा

--अश्विनी कुमार आलोक

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें