सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

बड़े गांव की छिद्दन बाई 13

गचम पेल सड़कों पर देखी
देख देख बुद्धि चकराई
किसी काम से दिल्ली आई
बड़े गांव की छिद्दन बाई|

सड़कों पर थी पेलम पेला
कारें जीप बसें और ठेला
चारों ओर दिख रहा उसको
जैसे लगा महादेव मेला
दोपहर रात शाम भुनसारे
वाहन देख नयन थक हारे
अविरल द्दष्टि लगी सड़क पर‌
हिली डुली न डर के मारे
पुरुष और नारी में अंतर‌
बड़ी देर तक समझ न पाई|

फुटपाथों पर छिटके छिटके
लिपे पुते से लोग लुगाई
अपने अपने कामदेव को
लेकर रति साथ में आई
कभी कभी तो ऐसा लगता
लैला मजनूं पिघल रहे हों
चपल रोमियों किसी जूलियट
को आँखों से निगल रहे हों
बड़ी सड़क के बड़े अजूबे
देख देख कर बहुत लजाई|

तभी अचानक किसी कार पर‌
कोई बड़ा डंपर चढ़ आया
जैसे लोहे के प्रहार से
टूटा बर्फ और छितराया
कोई गया सुरलोक किसी का
हाथ किसी का फूटा माथा
पतिहीना हुई कोई अभागी
हुआ कोई विकलांग अनाथा
देख अनोखे गज़ब तमाशे
चीखी रोई और चिल्लाई|

--प्रभु दयाल

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