सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

फागुन की अगुआई में 14

सरसों सी मुस्कानोंवाली,
तीसी की तरुणाई में।
फिर सुंदर इक गीत सुनाएं
फागुन की अगुआई में।

सुनके नाचे सोन चिड़ैया
नाचे, तोता, मैना, मोर,
मन में नाचे प्रेम कन्हैया
चाहे शाम सुहानी भोर,
बांह पकड़ के बोले बैरी
चल चुपके अमराई में!

झरबेरी झुमके सा झूले
गुलमोहर से गाल हुए,
महुए सा मुस्काए जोबन
जी के हैं जंजाल हुए,
सिमटा जाए लाज का पहरा
इस पागल़ पुरवाई में!

सोते जगते संग सजन के
पायलिया झनकार करे,
खनके चूड़ी,कंगन सुनके
कोयलिया किलकार करे,
आते जाते लोग निहारे
घर, बाहर, अगनाई में!

गदगद हो गए बरगद पीपल
पर्वत पिघला जाए सखी,
पंडित ज्ञानी पीछे पड़ गए
जोगी जोग मिलाए सखी,
टूट रहे सब जप,तप संयम
एक मेरी अंगराई में!

--शंभु शरण मडल
धनबाद

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