खेल रहे सब ही जन मिल के
खोजत नव-नित रंग
ओ भैया होली का हुड़दंग
गरिमा के 'गुलाल' को भूले
गाली गूँजें सदनों में
अदब 'अबीर' लुप्त दिखता,नहिं
भेद बड़ों में अदनों में
केमीकल का असर हुआ ये
कान्ति दिखे ना वदनों में
तन देखो या मन देखो
सब के सब हैं बदरंग
ओ भैया होली का हुड़दंग
अब की होली कुछ ऐसे हम
खेलें तो फिर आए मजा
'गुण' गुलाल चेहरों पे मल के
नाचें 'ढ़ंग' के ढ़ोल बजा
'मनुहारों' की बंटे मिठाई
'सत्कारों' के साज सजा
गर ऐसा हो जाए तो
मन होवे मस्त मलंग
ओ भैया होली का हुड़दंग
--नवीनचंद्र चतुर्वेदी
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