सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

खोल देते पिटारे 15

खोल देते पिटारे
अपठनीय होते
पठनीय हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।

दुनियाँ की दौड़-धूप में
उलझे-उलझे सुलझे
गाँव महानगरों में सिमटे
खोल देते पिटारे
मौन के स्वर हैं
गूँजते हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।

हैं सम्बन्धों के शत्रु-मित्र
शंकाओं के बीज, और
दौड़ते रहते अहर्निश
युगों से कितने समर्पित-
गगन से झाँकते
सूर्य के हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।

मुखौटे झूठे-सच्चे
चेहरा दिखाते, दर्पण हैं
दुनिया को मुट्ठी में रखते
बड़े विचित्र, बड़े विशाल -
पकड़ में न आते
अपरिचित हस्ताक्षर जैसे
ये समाचार।

- निर्मला जोशी
(भोपाल)

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