ढोल पीट कर
पोत लीप कर
समाचार के बाजे बजते
सच के कोई मूल्य न बचते
बिके मीडिया के महामहिम
टीवी पर हावी है पश्चिम
जश्न हो रहा है सातों दिन
चमक दमक में भूले रहकर
आम जनों के कटें न दुर्दिन
फिल्म दिखा कर
क्रिकेट खिला कर
दुख पर मरहम पट्टी रखते
दर्द देश के जरा न घटते
अपनी भाषा लगी ठिकाने
अपने सारे पर्व बिराने
अपनों से ही गए ठगाने
हम तो केवल कठपुतली है
गाते हैं अँगरेजी गाने
खाल खींच कर
आँख मीच कर
डालर को जेबों में भरते
स्वाभिमान के चिथड़े करते
-पूर्णिमा वर्मन
(शारजाह, संयुक्त अरब इमारात)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें