सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

बैठ मुड़ेरे चिड़िया चहके 15

बैठ मुड़ेरे चिड़िया चहके'
समाचार है
सोप-क्रीम से जवां दिख रही
दुष्प्रचार है

बिन खोले- अख़बार जान लो,
कुछ अच्छा, कुछ बुरा मान लो
फर्ज़ भुला, अधिकार माँगना-
यदि न मिले तो जिद्द ठान लो

मुख्य शीर्षक अनाचार है
और दूसरा दुराचार है
सफे-सफे पर कदाचार है-
बना हाशिया सदाचार है

पैठ घरों में टी. वी. दहके
मन निसार है


अब भी धूप खिल रही उज्जवल
श्यामल बादल, बरखा निर्मल
वनचर-नभचर करते क्रंदन-
रोते पर्वत, सिसके जंगल

घर-घर में फैला बजार है
अवगुन का गाहक हजार है
नहीं सत्य का चाहक कोई-
श्रम सिक्के का बिका चार है

मस्ती, मौज-मजे का वाहक
असरदार है

लाज-हया अब तलक लेश है
चुका नहीं सब, बहुत शेष है
मत निराश हो बढ़े चलो रे-
कोशिश अब करनी विशेष है

अलस्सुबह शीतल बयार है
खिलता मनहर हरसिंगार है
मन दर्पण की धूल हटायें-
चेहरे-चेहरे पर निखार है

एक साथ मिल मुष्टि बाँधकर
संकल्पित करना प्रहार है

- संजीव वर्मा 'सलिल'

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