समाचार है आज मंच से
रोटी बोलेगी
भरे पेट के भेद सभी
श्रीमुख से खोलेगी
भीतर माल सतह से तह तक
भरा ठसाठस है
तिनका भर भी रख पाने को
नहीं जगह अब है
भानुमती का अजब पिटारा
पेट बना डाला
सच्चाई ईमान सद विचारों को
खा डाला
आज पते की बात हवा
कण कण में घोलेगी
खाने और अधिक खाने की
होड़ मची कैसी
सतयुग त्रेता द्वापर में भी
नहीं दिखी वैसी
लगता है कि आसमान
धरती को पा लेगा
अपनी निष्ठुर बाहों में
सपूर्ण समा लेगा
रोटी अब भी मन ही मन
क्या अंसुअन रो लेगी?
नदी दौड़्ती जाती है
सागर से मिलने को
डाल डाल पर कलियाँ
दिखतीं उत्सुक खिलने को
परम पिता से मिलने को
कण कण मतवाला है
आँखों पर क्यों इंसानों ने
परदा डाला है?
भ्रमित आत्मा भ्रम के
जंगल जंगल डोलेगी
-प्रभु दयाल
(छिंदवाड़ा)
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