मन पे धन का बोझ थोपे
हर जगह व्यापार तारी
सत्य और ईमानदारी
के शेयर सब
पिट चुके हैं,
झूठ और षड्यंत्र अब
किश्तों में बँट कर
बिक रहे हैं
हर कोई सिक्का हुआ है,
माल का हिस्सा हुआ है
बाज़ के डैने
कबूतर तक पहुँच कर
रुक गए हैं,
आदमी इतने सरल हैं
खुद में ही
उलझे हुए हैं
आँख मूँदे चल रहे सब
जानते हैं छल रहे सब
वार्ता फिर भी है जारी
हर जगह व्यापार तारी
जनता हूँ ...
तुम नहीं लिख पाओगे
उसकी उदासी,
तुम समझ भी
पाए हो क्या बेकली
उसकी ज़रा सी ?
उसके मन की सुगबुगाहट
और मन की थरथराहट
लिख सको तो
यह ही लिख दो
हम बहुत कुछ
खो रहे हैं
आरियों की घरघराहट
सुन के पर्वत
रो रहे हैं
पर समाचारों में आया ...
सांसदों ने पौध रोपे
पर्वतों पर बर्फ बारी
हर जगह व्यापार तारी
-वीनस केसरी
(इलाहाबाद)
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