सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

सुबह सुबह का 15

बिलकुल ताज़ा समाचार है


चढ़ा शहर को
जाति धर्म वाला बुखार है
इसके उसके हाथों का
झुनझुना रहे हैं
लोग हवा में
मंदिर मस्जिद बना रहे हैं
एक लड़ाई अपने से ही
आर पार है
सुबह सुबह का
बिलकुल ताज़ा समाचार है


रोज़ी रोटी में भी
बस अगड़ा पिछड़ा है
उंच नींच का या
आरक्षण का झगडा है
इसकी टोपी
उसका आँचल तार तार है
सुबह सुबह का
बिलकुल ताज़ा समाचार है


जाति धर्म दोनों की
जननी है महंगाई
इधर कुआं है
उधर कुएं से गहरी खाई
आँखों आँखों पर
सपनों का बहुत भार है
सुबह सुबह का
बिलकुल ताज़ा समाचार है


अखबारों में
ख़ास आदमी का चेहरा है
आम आदमी
बस अँधा गूंगा बहरा है
सुख वो कैदी है
जो जन्मों से फरार है
सुबह सुबह का
बिलकुल ताज़ा समाचार है


दृश्यों को कर दिया
आँसुओं ने ही खारा
अफ़वाहों की आग
झुलसता जंगल सारा
सिर्फ धुआँ ही पीती
पेड़ों की कतार है
सुबह सुबह का
बिलकुल ताज़ा समाचार है

-यश मालवीय
(इलाहाबाद)

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