साहित्यिक गतिविधियाँ सारी
हुई लुप्त अंधियारों में
हत्या और बलात्-कर्म की
खबर छपी अखबारों मे
तानाशाही और मनमानी
चौथा खम्भा करता है
छँठे हुए इन पढ़े लिखों से
तन्त्र प्रजा का डरता है
तूती की आवाज़ दब गई
कर्कश ढोल-नगाड़ो में
कोकिल के मीठे सुर केवल
डाली तक ही सीमित है
गंगा जी की पावन धारा
मैली सी है-दूषित है
काग सुनाते बेढंगे स्वर
आँगन और चौबारों में
समाचार हैं घिसे-पिटे से
विज्ञापन से भरे पृष्ठ हैं
रोज-रोज वो ही छाये हैं
जो दुनिया में महाभ्रष्ट हैं
नाच रही है नग्न नर्तकी
सड़क और गलियारों में
-रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
(खटीमा, उत्तराखंड, भारत)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें